सूरज ने ,
अपनी तपन से मुझे
कई बार तपाया है
तपा हू, जला हूँ
फिर भी शांत हूँ !
लेकिन,
तुम्हारे...., एक अबिश्वाश के ,
घात के आघात ने
मेरे मन की बेदना को
चीखौ में बदल के रख दिया
चीख रहा हूँ ,, बेचैन हूँ , करारहा हूँ
अशांत हूँ !
पराशर गौर
जून २ ,२०१० समय ६ १२ पर
Wednesday, February 2, 2011
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