मै,
अपनी शादी के चक्कर में
रिश्तेदारों और ब्राहमणों के यहाँ
आते- जाते, जाते -आते थक गया
दिन बीते , उम्र टहलने लगी
बुडापा ठलने को आया !
एसे मे,
ना तो कोइ सन्देश
और ना ही , कोइ रिश्ता आया !
एक मित्र ने दी सलाह
क्यूँ भटक रहा है दर -दर मेरे यार
अपनी शादी का तू .
अखबारों में दे इश्तेहार !
सो दिया........
" एक सुन्दर सुशील , टिकाऊ
जो नही है बिकाऊ के लिए
एक सुंदर स्त्री चाहिए ...."
कुछ दिनों के बाद
पत्र आए .............,
स्त्रीयुओ के कम
पुरषों के ज्यादा आये !
खोलकर , जब पड़ा
सबने एकही बात लिखी थी
कृपया , हमारी ले जाये !
पराशर गौर
४ जून ०२ १३.१२
Wednesday, February 2, 2011
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