Wednesday, February 2, 2011

तसवीर

तसवीर



वो

सामने देख रहे हो

दीवार के सहारे बैठी,

उस नरकंकाल को ?

वो,

विदेश में बसे

जॉर्ज याने जीत सिंह की माँ है

जो,

अपनों की राह ताकते ताकते

हड्डियों का ढांचा बन गई है!



जिसके शरीर पर

कपड़े का चिथड़ा टिकता नहीं

प्राण,

जाने कहाँ पर अटके होंगे !



शून्य आकाश को

ताकती उसकी निगाहें

हर आने-जाने वाले से

एक ही प्रश्न कर रही हैं

कि,

मेरा क्या गुनाह है

जिसकी सज़ा, मुझे मेरे अपने

इस तरह से दे रहे हैं !



कह रही है

कोई, मुझे एक बार उसकी

शक्ल दिखा दो तो, मैं

मैं चैन से मर जाऊँगी



मैं कहता हूँ

जिस दिन उसने तेरी ये

शक्ल देख ली .....

उस दिन जीत सिंह, जीत सिंह नहीं होगा

जॉर्ज, जॉर्ज नहीं रहेगा`

तू तो

मर कर भी ज़िंदा रहेगी माँ के रूप में

लेकिन वो,

ज़िंदा रह कर भी मर नहीं पायेगा

वो तो

प्रयाश्चित कि आग में झुलसता रहेगा

ता ज़िन्दगी भर !



कापी राइट @

पराशर गौर

२५ जनबरी २०११ समय ११ बजे दिन में

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