Saturday, May 29, 2010

vipi ise e patiki me daal de
parashar


" कच्ची ( दारु ) "
( सूर्य अस्त /पहाड़ मस्त.. स्वर्गीय कबी गुरुदेब कन्हया लाल डंडरियाल जी की कबिता " चा " से प्रेरित होकर )

कच्ची भवानी इस्ट च मेरी
दिलम बस्दा, बस क़चि वा
एक तुराक जख्मी मिलजा
मंदिर मिखुणि ब्ख्मै चा !

सुधनी मीथै अपणा बिरण की
याद नि औंदी मी कै की ...
स्वीणम बीणम रटना रैंदा
दगड्ओ मीथै, बस कचिकी
बच्यु छो, मी कच्ची पीणाकु
मुरुणच मिन, कच्ची पेकी !

मुरुणु बैठ्लू मुगदानो की तब
बाछी नि लाणी खोजिकी
हथपर दिया दगड्ओ मेरा
बोतल बस एक कच्ची की !

गिचम म्यारो घी नि धुल्णु
धुल्या , पैली तुराक भटी का
हबन कनी चितामा मेरी
पैलू पैलू कनस्तर कची का !

!कफ़न कपड़ा कवी नि दीणा
डुरडा ह्वी बस बबला का
लास पर मेरी चोछ्याड़ी
लटकी ह्वी अध्य ,बोतल कच्ची का !

सटी लगया ना छुरक्यु मेरी
ख्ल्या रस्तोमा बोतल कच्ची की
अर उकै कदमा रवा सांग मेरी
ज़ोकी दूकान ह्वी कच्ची की !

लास मेरी माँ दगड्यो
जैया ना तुम भूलीकी
फुक्या मीथै कै रोंला / गदाना
जख गंघ आणीहो कच्ची की !

चिताका चोछड़ी मडवे म्यारा
बिठाली उ , क़चि दीणा
किरय्म मारू वी बैठला
बैठी जैल, दिनभर क़चि पिणा !

एक द्शादीन कटुडया आलू
कटुडम वे थै भी क़चि देल्या
दवा दशाका दिन बमणू थै
भी कची पीलोंण तस्लोला !

कची बणी ह्व़ा सुंदर सी
अर गंध आणि हो जैमा
एक गिलास म्यारा सिरोंदो
धैरिदिया तुम मीकु खाँदै माँ !

पराशर गौर
मई २९ दिन्म ३ ४५ पर २०१०