Wednesday, February 2, 2011

समय समय का फेर

पिछले दिनों में
अपने एक कवी मित्र जो किसी
हिंदी संस्था के अध्यक्ष थे
उनके घर मिलने गया
देखा ...,
वो कागजो में उलझे थे
पिछले दिनों वे संस्था के
चुनाव में हार गए थे ...
अब वो बर्तमान से भुत हो गए थे !

मैंने उनसे कहा .. " कहीए .."
समय कैसा कट रहा है
क्या कर रहे हो
वे बोले ...
क्यों घावों पर नमक छिडक रहे हो !

मै बोला .. नही नही मन्याबर
मै तो एक मित्रता के नाते
बात कर रहा हूँ
उनका उत्तर था .. " सच का रहे हो ?"
'---सची पूछ रही हो ?'
समय कैसे कट रहा है , काट रहा हूँ
तो आजकल मै ..
अपने नामके आगे लगे भुतपूर्ब शब्द को
रगड़ रगड़के मिटा रहा हूँ !

पराशर गौर
७ जुलाई ०३ २० ३१ पर

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