Wednesday, February 2, 2011

अस्थाई हूँ मै !

अस्थाई हूँ मै ! !

मेरा गाँव
अभी वही है
वे चोराहे ,वो पगडंडिया
वो खेत अभी भी वही है !
वो चशनाले, वो पर्वत
वो चोटी पर बना मंदिर
मंदिर के अंदर रखी वो मूर्ति
अभी भी वही है !
सब कुछ तो वही ही है
अगर नहीं हूँ तो- मै !
मै ,
नियति के हाथो की कठपुतली बनकर
फिर रहा हूँ इधर से उधर
उनकी तरह स्थाई नहीं हूँ
अस्थाई हूँ मै !

पराशर गौर
दिनाक २८ जनबरी २०११ समय दिनके १.१५ पर

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