Wednesday, February 2, 2011

उठ !

वो,
पत्थर को भगवान् मानने वाले इंसान
जरा,
चेतना की आँखे खोल
ये पत्थर तुझे ,
चोट की सिवा कुछ नहीं देंगे
ये, भूखो को रोटी नहीं देंगे
ये, चीखती चिलाती दुखियारो के
आंसू नहीं पोंछ पायेंगे !
उठ ,
जिन हाथो ने तुने इसे तराशा है
उन्ही हाथो से मेहनत कर
उठा
फावड़ा , कुदाल गेंती
चीर कर धरती को पैदा कर
वो अनाज ,
जो भूख को शांत करती है
जो देती है संबल जीने का
तब ,
तू भी सुखी रहेगा
तेरा ये भगवान् और समाज भी !

पराशर गौर
२५ जनबरी २०११ रात ११ बजे

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