Tuesday, January 6, 2009

जब भगवान ने भारत से चुनाव लड़ा

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सुबह चाय की प्याली को लेकर भगवान जी के कक्ष में दाखिल होकर अखबार को बढ़ाते हुए नारद ने कहा- "वैसे बुरा नहीं छापा आपके बारे में पत्रकारों ने लेकिन कल तो बाल बाल बच गये वरना सारी पोल खुल जाती और चुनाव लड़ने से पहले ही हार गये होते।" "वो कैसे?" भगवान ने पूछा।
"वो तो घर के चौखट तक पहुँच चुके थे। केवल दहलीज़ लाँघनी बाकी रह गई थी। फिर घुसते भीतर, फिर बेडरूम में ..सारा भंडा फूट जाता। जो पढ़ रहे हो उसकी जगह छपा होता- बैकुंठ से भगवान पृथ्वी पर चुनाव लड़ने आये हैं। जाने क्या कर दिया होगा उसने वहाँ। फिर छपी होतीं एक से बढ़ एक बातें और कच्चा चिट्ठा।"
"ये बात थी।" नारद के हाथों को चूमते हुए भगवान बोले- "थैंक्यू..थैंक्यू ब्रर्दर।"
जब से भगवान व उनकी पार्टी ’गरीब दल” ने भारतखन्ड को अपना चुनाव-स्थली चुन तब से आये दिन अखबारों में उनके बारे में छपने लगा था। जिन्हें पढ़ पढ़ कर वहाँ की नेशनल एवं रिजिनल पार्टियों में एक भूचाल सा आ गया था। उनकी नीदें उड़ गईं। उनके कान खडे़ हो गये कि ये शख़्‍स और ये पार्टी आखिर है कौन? कहाँ से आये हैं? जिन्हें कोई नहीं जानता था उन्हें लोग रातों रात जानने लगे थे।
भारतखन्ड में ’भगवान और गरीबदल’ एक जाना माना नाम हो गया था जिसे सुन सुन कर वहाँ के दिग्गज नेता काशीराम सिलमोड़िया व फतेसिहं पहाड़ी की नींद हराम हो गई थी।
दोनों कई सालों से इस क्षेत्र की राजनीति में ध्रुव तारे के समान चमक रहे थे। मजाल है इनके रहते रहते कोई यहाँ सेंध मार दे। यद्यपि दोनों एक दूसरे के कट्टर दुशमन, कट्टर विरोधी, दोनों एक दूसरे को यूँ तो फूटी आँख नही सुहाते थे लेकिन जब से ये भगवान वाला चक्कर शुरू हुआ तो दोनों एक दूसरे के करीब आने के लिए रास्ते तलाशने में लगे हुए थे। जब कुर्सी व बिल को खतरा दिखाई दे तो नेता-नेता से, साँप नेवले से, आपस में हाथ मिलाने से नहीं चूकते। बस यही हाल था इन दोनों का भी ।
काशीराम के घर के आगे मोटरों का काफिला रुका। काशीराम ने दौड़ कर फतेसिंह की कार के पास जाकर, उसका दरवाजा खोला और हाथ जोड़ कर उससे स्वागत की मुद्रा में बोले-
"नमस्कार। हमारे गरीबखाने में आपका स्वागत है, भाभी कैसी हैं, बच्चे कैसे हैं।
फ़तेसिहं ने चलते चलते उत्तर दिया- "वे सब तो ठीक है लेकिन हम ठीक नहीं हैं।"
ये सुन के काशीराम भी बोले- "सच मानिए तो वही हाल हमारा भी है जब से पिछले दो चार दिनों के अखबार पढ़े।" सोफे पे बैठते हुए उसने कहा।
"देखिए पहाड़ी जी, हमारे और आपके बीच जो भी घट रहा हो वो घर की बात है। उसे हम संभाल लेंगे। लेकिन, कोई अजनबी.. वो हमारे घर मे सेंध लगाये, इसे हम बिलकुल बरदाश्त नहीं करेंगे। आप क्या कहते हैं इसके बारे में?" - सिलमोड़िया ने फतेसिंह की ओर मुड़ कर कहा ।
"जहाँ तक सेंध का प्रश्न है वो तो लग चुकी है काशीराम जी।" फतेसिंह ने कहा।
"तो कुछ कीजिए ना।"- काशीराम बोले।
"उसी के लिए तो आये है यहाँ। कुछ सोचना होगा इसके तोड़ का।"
तभी काशीराम को याद आया, फतेसिंह से बोले-
"अरे आपके विधायक है ना? वो क्या नाम है उनका ..जगतपती...।"
"हाँ..हाँ।" सर हिलाकर फतेसिह ने उत्तर दिया।
"उनके बडे़ भाई साहब के दामाद है ना ’खबर ले, खबर दे ’ के अखबार में।"
"एच.पी की बात तो नहीं कर रहे है आप?"
"हाँ, हाँ ऊन्हीं की उन्हीं की, उनसे कह के उन्हें फोन लगवा कर उनसे पता करवायें इस पूरे नाटक का।"
फतेसिंह ने फोन मिलाया जगतपती को-- "हलो.. जगतपती, हम फतेसिंह बोल रहे है..।"
"नमस्कार, नेता जी। कहिए कैसे है आप।"
"हम वैसे तो ठीक है लेकिन एक समस्या .. "
बीच मे बात काटकर के जगतपती ने कहा-
"हम समझ गये हैं सारी समस्याएँ। भगवान वाले की बात कर रहे हैं ना आप?कहिए हम क्या कर सकते हैं आपके लिए?"
"आपके बडे़ भाई के दामाद है ना, ’खबर ले-खबर दे” अखबार मे चीफ़ रिपोर्टर उनसे बात करवाओ तो ... ।"
"अभी करवाता हूँ। आप लाइन पर ही रहियेगा।"
थोड़ी देर में जगतपती और एच. पी. बतियाने लगे-
"हलो..कौन - ?"
"मै, जगतपती।"
"ओ, चाचा जी प्रणाम। कहिए कैसे याद किया..। "
"बेटाजी, हमारे नेताजी .." बात पूरी होने से पाले फतेसिह बीच में कूद पडे़।
"अररे एच.पी. साहब, कैसे है आप?"
"सब आप की कृपा है नेता जी।"
"कृपा तो आप जैसे की होनी चाहिए। हम जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं पे। आप का फोन कही टेप टाप तो नहीं होता है ना।"
"नहीं नहीं, आप खुलके कहिए जो भी कहना हो।"
"आपको तो पता ही है चुनाव सर पर है। वैसे भी कई लफ़ड़े हैं ऊपर से ये भगवान वाला क्या लफड़ा है थोड़ा पता करेंगे।"
"वैसे तो, असल में, हमें भी कुछ पता नहीं। आप कहते हैं तो, एक- दो, दिन में पता करके आपको बताता हूँ।"
"ज़रा जल्दी हो जाए तो बड़ी कृपा होगी।" - फतेसिंह ने बडी दयनीय भाव मे कहा ...।
"नेता जी शर्मिन्दा न कीजिये। आपने एक काम दिया है अवश्य करेंगे। यकीन कीजिए। " - कह कर फ़ोन रख दिया एच.पी.ने।
फतेसिंह ने मुड़कर काशी राम से कहा- "देखिए, हम दोनों की हालत पतली है ये तो आप भी जानते है। ऐसे में राजनीति करने की भूल मत कीजियेगा जैसे आप ने पिछले चुनाव में की थी। कहा था की ऊपर की चार सीटों पर अपने केंडिडेट खड़ा न करें, लेकिन नहीं माने। नतीजा क्या निकला था। आप भी हारे, हम भी। "
"जहाँ त ाजनीति सवाल है तो आप ने भी कहाँ कसर छोड़ी।", पलट कर वार किया काशीराम ने -"आप से कितनी मिन्नतें की थीं तब हमने कि हमारी सरकार को अभी मत गिराइये। मत खींचिये हाथ को। सर्मथन वापस ले लिया। ये राजनीति नहीं थी तो और क्या थी? राजनीति आप करते है हम नहीं। खैर छोड़िये, फिलहाल पहले जो समस्या है उसके बारे में सोचते हैं।"
"परसों तक रुकते हैं। देखें, एच.पी क्या खबर लेकर आता है।" फतेसिंह बोला। उठकर जाने लगा तो काशीराम ने फिर कहा।
"अगर हम सरकार बनाने की क्षमता में आये और कही दो चार सीटों की जरूरत पड़ी तो--"
" देखेंगे, देखेंगे।" कह कर जाते जते फतेसिंह ने कहा और चल दिये ।
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