Tuesday, January 13, 2009

स्वतंत्रता की छटपटाहट

मैं ---
महाभारत के पात्रों की तरह भी
नहीं जीना चाहाता
ना तो बापू को बन्दरों जैसा
और नहीं ...
आज के यू.एन.ओ के मैंम्बरों की तरह

मैं ..
भीष्म पितामह की तरह
उचित-अनुचित को जानते हुए भी
अर्थ-अनर्थ समझते हुए भी
मौनता को ओढ़कर
प्रतिबद्ध होकर खूँटे से बंधकर
आँखें मूँदे सब सहता रहूँ ।
बैठे बैठे अपनी विविशता का
इज़हार करता रहूँ

मैं ---
गाँधारी की तरह भी नहीं जीना चाहाता
आँखें होते हुए भी
आँखों पे पट्टी बाँधकर, अंधापन ओढ़ लूँ
एक समुचा पूरा युग, दूसरे के नाम कर दूँ

मैं---
बापू के बंदरों की तरह
आँख, कान, मुँह बंद कर
अiहंसा जैसे मंत्र के कवच को पहन लूँ
अपराध हो ना हो, चाँटा खाने को
एक गाल के बाद दूसरा आगे करलूँ
मेरे भी हाथ है तो फिर .. मैं क्यों चुप रहूँ

मैं
यू.एन.ओ के मैंम्बरों की तरह भी नहीं जिऊँगा
जो कान खोले, सिर झुकाये
किसी की आवाज का इन्तज़ार करते हैं कि
बिना कुछ देखे, बिना कुछ कहे
हाथ उठाओ, हाथ गिराओ और हाँ में हाँ मिलाओ
ये मुझ से नहीं होगा
क्योंकि मुझ में सोचने की शक्ति है

मैं ..
देखना चाहता हूँ
तुम्हारी दूरदर्शिता
तुम्हारे इर्द-र्गिद जुड़े उन चाटुकारों को
जो तुम्हारे अंधेपन और उससे जुड़ी
त्रासदी का लाभ उठाते

मेरी खुली आँख, ज़ुबान और हाथ
इस बात की गवाह हैं कि
आदमी स्वतंत्र पैदा हुआ था
स्वतंत्रता उसका जन्म सिद्ध अधिकार
था और है -------
उस युग में भी और इस युग में भी ।

1 comment:

  1. kya baat hai Parashar ji,

    Ye hai aaj ke aadmi ki iccha aur vivashata...iccha sahi jagah hai aur vo ghira baitha hai aise naakaraon ke beech....
    Jai Shankar Prasad ji ki Kamayani ki kuch panktiya yaad aa gai..

    Gyan , Karm kuch Kriya door hai
    Iccha kyon poori ho mun ki ,
    ek doosre se na mil sake
    yahi vidambna hai jeevan ki..

    In vidambnaon ko samjhne aur todne ki iccha ke liye badhai!!

    shailja

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