Tuesday, January 6, 2009

aage जब भगवान ने भारत से चुनाव लड़ा

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इधर भगवान जी का तूफ़ानी चुनावी दौरा शहर-शहर, गाँव- गाँव होता हुआ हज़ारों लाखों की भीड़ को जोड़ता हुआ बढ़ता ही जा रहा था। सुनने वाले "कल.., ज़रा रुकिए। मैं स्कैज्युल देख लूँ। कल तो ...ओ--, मुश्किल हो जायेगी.... वो क्या है कि, कल बहुत बिजी है।"
तभी भगवान जी बीच में बोल पड़े..."हम तो एकदम खाली हैं।"
टेलिफोन के चोंगे पर हाथ रखकर- "सिस्स्स्स स्स्स्स्स्स्" - नारद भगवान जी से बोले- "इनको थोड़ा इन्तज़ार करवाना ज़रूरी है, तभी आदमी की कीमत बढ़ती है- आप नहीं समझोगे..राजनीति के खेल हैं।"
एच.पी.- "और परसों?"
"हाँ परसों सुबह 7.30 बजे कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग है। दोपहर में एक डेलिगेशन आ रहा है। शाम को पातलखंड के कार्यवाहक एडमिन्सिट्रेटर के साथ, उसके बाद गरीब दल के उच्च अधिकारियों के साथ मंत्रणा...खैर जब आपने आदेश दे ही दिया है तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा आपके लिए। अब देखिये ना.. आप जैसे मित्रों को निराश भी तो नहीं किया जा सकता। शाम के 5.30 बजे कैसा रहेगा।"
"ठीक है। बहुत बहुत शुक्रिया नारद जी।"
"इसमें शुक्रिये की क्या बात है एच.पी. साहब। ये तो एक हाथ से देने और एक हाथ से लेने वाली बात है। आप हमारी पीठ खुजलायें और हम आपकी... कैसा कहा...।"
"जी बिल्कुल सही... अच्छा तो शाम को मिलते हैं।" - कहकर फोन रख दिया दोनों ने।
फोन को रखते नारद भगवान जी से बोले- "हाँ, जब वो आयेगा तो आप अपने नये कलफ़ लगे कुर्ते के पल्लू को साइड से फाड़ दें।"
भगवान आश्चर्य से नारद की ओर देखकर पूछने लगे- "ऐसा क्यों?"
"बताता हूँ, बताता हूँ!"- नारद बोले- "सवाल कम करा करें प्रभो। जब वो आएगा तो, आते ही वो आपसे पूछेगा..’अरे! नेता जी, क्या बात है? आपका कुर्ता फटा पड़ा है।’ आप बिना देखे कहेंगे- ’कहाँ...। अररे, हमें तो पता ही नहीं..। फ़ुर्सत कहाँ इन सब बातों के लिए।’ कह कर आप, उनका हाथ पकड़ कर सोफे की ओर ले जाएँगे..। क्या समझे?"
"इससे क्या होगा नारद जी?" - भगवान जी ने पूछा।
"इम्प्रेशन...प्रभो! इम्प्रेशन! ये टोटके हैं राजनीति के!"
अगले दिन जब फतेसिंह ने अखबार उठाकर देखा तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं। भगवान के साथ एच.पी. का लम्बा चौड़ा इन्टरव्यू? बड़बड़ाने लगे पहाड़ी जी- "हम से तो कहता था रहस्य पता करेंगे, और यहाँ देखो... उसके तारीफ़ों के क्या पुल पे पुल बाँधे हैं।" गुस्से में जगपती को फोन लगाया।
"हल्लो... जगपती। आज का अखबार देखा?"
"जी...।"
"क्या तलवे चाटे हैं एच.पी. ने हमारे विरोधी के।"
"अरे नेताजी, गुस्से पर काबू रखें। अगर उसने तारीफ़ों के पुल बाँधे हैं तो कहीं न कहीं एक आध ईंट की जगह अवश्य छोड़ी होगी अंदर घुसने के लिए। आपने उसे काम दिया है ना करने को, तो वो ज़रूर करेगा। तारीफ़ करके तभी तो अंदर घुसेगा ना? आप ही ने तो सिखाया है कि पहले विश्वास तो और समय आने पर विश्वासघात करने से मत चूको।"
"ठीक है..ठीक है।" - नेताजी ने जैसे ही फोन रखा था कि दरवाजे पर काशीराम दिखाई दिये।
"नमस्कार सिलमोड़िया जी। कहिए कैसे आना हुआ?"
"सिंह साहब.. लगता है कि हमारे राजनीति के दिन लदने वाले हैं।" - सोफे पर बैठते हुए काशीराम ने कहा। -"उनकी मीटिंगों में वो ताबड़-तोड़ भीड़, हमारे यहाँ खाली खाली तम्बू। जिन्हें देख देख कर हमारे कार्यकर्ताओं के मनोबल टूटने लगे हैं। कुछ कीजिये नहीं तो नाक ...."
"अररे...नहीं..नहीं, ऐसा नहीं होगा काशीराम जी।" अन्दर के कमरे में जाकर दोनों मन्त्रणा करने लगे। दरवाजे पर जैसे ही दोनों आये फतेसिंह ने काशीराम के कान में जाने क्या कहा कि जिसे सुनकर काशीराम ने सर हिला के अपना समर्थन दिया।
"हाँ...जैसा हमने आप से कहा बस वैसे ही करें। पहले अपने एक दो चमचों से भाषण करवायें, जैसे ही आपका भाषण शुरू हो बस तभी अपने किसी गुरगे से कहें कि लाइट काट दे। उसके बाद तब आप दिल भर के कोसें अपने विरोधी भगवान और उसके गरीब दल को। क्या समझे?"
इधर जैसे ही भगवान जी का चुनावी रथ भारतखण्ड की राजधानी पहुँचा, लोगों की भीड़ देखते ही बनती थी। सड़कों, रास्तों, पहाड़ों यहाँ तक की घरों की छतों पर आदमियों की भीड़ इकट्ठी होकर उनको सुनने के लिए बेचैन थी। जैसे ही भगवान ने बोलना शुरू किया कि भीड़ से "गरीब दल ज़िन्दाबाद" के नारों से समुचा पहाड़ गूँज उठा। अपने भाषणों में बीच बीच जब जब वो गरीब व गरीबों की बात करते तब तब जयकारों, नारों व तालियों से पूरा वातावरण गूँज उठता।
दूसरे दिन काशीराम ने आपा-धापी में एक मीटिंग रखवाई। किराये की भीड़ जुटाई गई। कुछ लोग वैसे भी आ गये सुनने को। जैसे ही काशीराम बोले कि एकाएक बिजली चली गई। बस फिर तो बरस पड़े काशीराम गरीब दल पे..."भाइयो य सारी की सारी शाजिस गरीब दल की है। ये शरारत हमारे विरोधियों की है। हमने अपने पूरे राजनैतिक जीवम में कभी भी ऐसी iघनौनी और ओछी हरकत नहीं देखी। क्यों भाइयो?"
भीड़ चिल्लाई- "बिल्कुल सही ...ये तो सरासर ज्यादती है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।" भीड़ गुस्से में घर चली गई। दूर-दराज़ों से पैदल, मोटर-गाड़ी, रेलों में भर-भर कर आने लगे। उनकी अदाओं, उनके भाषणों का असर मतदाताओं पर सर चढ़कर बोलने लगा था।
ये देखकर प्रांतीय सरकार को उनकी कड़ी सुरक्षा का विशेष प्रबंध करना पड़ा। वह जहाँ भी जाते, जनता पागलों की तरह टूट पड़ती। अखबारों, मैगज़ीनों, टेलिविज़नों, प्रैस-रिपोर्टरों की भीड़ देखते ही बनती थी। उनकी कब्रेज़ मुख्य पृष्ठों पर छापे जाने लगी। टेलिविज़नों में होड़ सी लगने लगी थी। रेटिंग आसमान छूने लगी थी। ऐसे में, वे विज्ञपन वालों से चाँदी कूटने लगे थे।
ये सब देखकर नारद जी, अति प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे। भगवान जी से बोले- "प्रभो..., अखबार, टी.वी. की रिपोर्टों से लगता है कि हम चुनाव जीत गये हैं। आपका जवाब नहीं। क्या भाषण देते हैं आप! जो जहाँ रहता है, वहीं जम के रह जाता है। और बाई गॉड... मैं तो कहता हूँ अगर आप फिल्मों में जाएँ तो, अमित जी देखते रह जायेंगे। कुछ भी कहो प्रभो, जनता बड़ी खुश है। भगवन देखा उन कैसटों का कमाल, जिन्हें मैं मार्केट से लाया था। थेंक्यू अमित बच्चन जी, थेंक्यू राजकुमार जी, थेंक्यू दिलीप जी, थेंक्यू..थेंक्यू!!" - दोनों हाथ जोड़ कर नारद जी बोले।
"अभी तो शुरूआत है नारद जी, आगे-आगे देखिये होता है क्या!" - भगवान जी ने कहा -"वैसे--अगली मीटिंग कहाँ है?" उन्होंने प्रश्न किया।
"भारतखण्ड की राजधानी ’गेंरीसेंण’ में।" तभी टेलीफोन की घंटी बजी।
"--हैलो, कौन?"
"जी--, मैं एच. पी.।"
"कहिए, क्या सेवा करें एच.पी. साहिब?"
"एक विशेष इन्टरव्यू करना चाहते हैं हम, अपने होने वाले भावी नेता पर।"
"क्या बात कह रहे हैं आप? वो, और भावी...?"
"जी हाँ भावी--, हमारी आँखों से देखिए ना। कब ठीक रहेगा?"
"अरररे..., आप जब चाहें चले आयें। आपके लिए तो दरवाजे हमेशा खुले हैं।"
"कल कैसा रहेगा।"

भगवान जी ने जैसे ही पेपर खोला, देखा तो हैरान रह गए पढ़कर। मोटे मोटे अक्षरों मं छपा था, "गरीब दल की घिनौनी शाजिस", फिर लिखा था पूरा विवरण। दौड़ कर नारदजी के पास जाकर बोले- "नारद जी देखिये क्या छपा है हमारे लिए! जबकि हमने ऐसा कुछ किया ही नहीं।"
नारदजी ने पढ़ते हुए कहा- "हमको जनता में बदनाम करके, अपने लिए हमदर्दी पैदा कर, हमारे वोटों काट कर, अपनी ओर करने की शाजिस है। राजनैतिक हथकंडा है प्रभो...।"
"ये बात है.. तो जल्दी से प्रैस कान्फ्रैंस बुलाइए। हम स्पष्टीकरण करना चाहेंगे।"
"डैमेज तो जो होना था वो तो हो चुका है प्रभो। फिर भी आप कहते हैं तो बुला लेते हैं।"
दूसरे दिन प्रैस कान्फ्रैंस में भगवान ने स्पष्ट श्ब्दों में कहा- "ये सरासर उनकी अपने दिमाग की उपज है। इसमें गरीब दल का कोई हाथ नहीं है। हमें जनता में बदनाम करने की शाजिस है। हमने कोई बिजली-वजली नहीं काटी। ये मगरमच्छ के आँसू रो रहे हैं। हम अपने मतदाताओं से अपील करते हैं कि वे इनके बहकावे में न आयें। इनकी कही हुई बातों पर विश्वास न करें।"
खेल शुरू हो चुका था जो हर चुनावों में होता आया है, आरोपों और प्रत्यारोपों का । पेपरों के माध्यम से। आरोप पे आरोप व कीचड़ उछालने गे थे एक दूजे पे दोनों पार्टियाँ। अखबार वाले आये दिन एक दूसरे की कमजारियों को खोद खोद कर छापने लगे थे। लकिन पार्टी वाले तो अपने विरोधी पार्टी की किसी ऐसी खबर की तलाश में थे कि जिसको वो जनता में लपेट लपेट कर भुना सकें। चाहे वो व्यक्तिगत हो या चरित्र से हो।
नारदजी भगवान जी को कदम कदम पर फूँक फूँक कर चलने की राय देते रहे।
फतेसिंह और काशीराम की हालत देखकर लगता था कि अंदर से वे हार मान चुके हैं कि तभी एच.पी. का फोन बज उठा-
"हल्लो..नेता जी हैं।"
"कौन बोल रहे हैं?"- पहाड़ी जी ने कहा।
"मैं एच.पी.।"
"कहिए ... कहिए कोई खबर?"
"जबरदस्त खबर है आपके लिए। मैंने पता कर लिया है इस शख़्‍स के बारे में।" जैसे ही पता करने वाली बात सुनी...,फतेसिंह ने, उसके बुझते चहरे पर एक चमक आई और बोला- "हाँ, बताइए. बताइए।"
"वहीं आकर बताता हूँ।" कहकर एच.पी. ने फोन रख दिया।
फतेसिंह अपनी कोठी के बरामदे में एक कोने से दूसरे कोने में जैसे लखनऊ के अजायब घर में, पिंजड़े में बन्द "मैन ईटर" (पहाड़ी लदार, जिसने 20-25 बच्चों को मारा था) की तरह एच.पी. की इन्तज़ार में इधर से उधर घूम रहे थे कि अचानक गेट पर गाड़ी आती दिखाई दी तो उन्हें लगा कि एच.पी. आ गया। लेकिन वो एच.पी. नहीं बल्कि काशीराम की गाड़ी थी। पहिचानने के बाद लगे फिर घूमने। काशीराम ने पास जाकर फतेसिंह को ऐसे घूमने व परेशानी का कारण पूछा-
"सिंह साहब सब खैरियत तो है?"
"आयें...आयें। एक अच्छी खबर है हम दोनों के लिए। अच्छा हुआ तुम खुद ही चले आये वरना फोन करके बताता।" वे अभी बैठक में गये ही थे कि घंटी बजी।
"ये लो, शायद एच.पी. ही है।" दोनों दौड़ कर बाहर दरवाजे पर आये। एच.पी. और वो अंदर बैठक में चले गये।
"हाँ, क्या खबर है एच.पी. साहब।"- दोनों एक साथ कह उठे।
"मुझे, भगवान जी के यहाँ एक फ़ैक्स की कापी मिली, जो लक्ष्मी जी ने इन्हें कुछ ही दिनों पहले भेजी थी।"
इतना कहना था कि वे दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे कि क्या खबर है। इसमें कौन सी बड़ी बात है लक्ष्मी ने फ़ैक्स किया तो...?
"आप नहीं समझे..?"- एच.पी. बोला
"नहीं।" - दोनों ने कहा।
"ये भगवान कोई और नत्थू खैरा भगवान नहीं है। ये स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं श्री कृष्ण!"
"स्वर्ग वाले..?" - काशीराम ने पूछा।
"हाँ.. वही स्वर्ग वाले, लक्ष्मीपति, दीन बन्धु..।"
"नहीं, नहीं ...मैं कैसे मान लूँ?" फतेसिंह बोला
"आप माने या ना माने, ये कापी है। यकीन न हो तो स्वयं ये कापी लेकर जाना और पूछना उनसे। मैं चलता हूँ।" कहकर चल दिया एच.पी.।
फतेसिंह को अभी भी यकीन नहीं हो रहा या कि अगर ये वास्तव में नारायण हैं तो इन्हें क्या जरूरत पड़ी कि वे पृथ्वी में आकर चुनाव लड़ें।
चुटकी लेते हुए काशीराम बोले-"अरे सिंह साहब, कहीं ऐसा तो नहीं कि इन्होंने भाई बिल कलिन्टन जैसा कोई लफ़ड़ा ..." काशीराम हँसते हँसते कहते जा रहे थे-"सोचा..., कहीं इम्पीचमेंट हो, उससे पहले भारत जाकर चुनाव जीत कर कम से काम पासपोर्ट तो हासिल करलूँ, न जाने कब काम आ जाए।" इतना कहना था कि फिर दोनों ठहाका मार मार कर हँसने लगे।
फतेसिंह ने कहा-"छोड़िए मजाक बहुत हो चुका। जल्दी से एक प्रेस-कान्फ्रेन्स बुलायें। उसमें खुलास.. लेकिन पहले क्यों न दोनों मिल के इस समय चुनाव लड़ें? कुछ भी हो वो इस समय हम पर भारी है। जनता उनके साथ है। अगर चुनाव जीत गये, फिर अलग अलग हो जायेंगें। इसमें कौन सी बड़ी बात है।"
"ठीक है।" काशीराम ने कहा -"पार्टी का नाम ’एकता पार्टी’..कैसी रहेगी?" दोनों सहमत हो गये।
दूसरे दिन कान्फ्रेन्स हुई। पत्रकारों से मुखातिब होकर दोनों ने एकता पार्टी के झन्डे तले एक हो कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया जो जनता व पत्रकारों के लिए भी एक चौंका देनी वाली खबर थी। किसी पत्रकार ने कहा- "ये तो वास्तव में चौंका देने वाली खबर है!"
फतेसिंह ने कहा- "अभी ते हम आपको एक और चौंका देने वाली सूचना देंगे।" सब ध्ौर्य के साथ बैठकर सूचना का इन्तज़ार करने लगे।
"हमारे विरोधी दल के नेता भगवान भारत से नहीं हैं।" इतना कहना था कि पत्रकारों में खलबली मच गयी। लगे प्रश्नों पर प्रश्न करने। "कहाँ से हैं? कौन हैं? क्यों लड़ रहा है चुनाव यहाँ से?" आदि आदि।
काशीराम जी बोले- "सब को उत्तर दिया जाएगा... पूरे परिणामों के साथ। लेकिन अभी आपको इन्तज़ार करना पड़ेग।" उठकर चल दिए दोनों नेता।
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