Saturday, December 20, 2008

बॉर्डर क्रासिंग: एक लफड़ा .....

बॉर्डर क्रासिंग: एक लफड़ा पाराशर गौड़

सारांश:- अमेरिका ने जब इराक पर आक्रमण किया तब कनाडा ने उसके इस युद्ध में भाग लेने से इन्कार कर दिया। एक मामले में उसका साथ नहीं दिया, साथ न देने पर अमेरिका कनाडा से बुरी तरह नराज़ है और तब से खिसियाया हुआ है कि जब जहाँ हो उससे बदला लिया जाये। बॉर्डर क्रासिंग इसका ताज़ा उदाहरण है।
पात्र: कस्टम अधिकारी (अमेरिका)
दो यात्री - 1, 2 (कनेडियन)
समय:दिन का।
स्थान: नियाग्रा फ़ाल, पीस ब्रिज
( पर्दा खुलता है, मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश उभरता है। एक मेज़-कुर्सी - उस पर कस्टम अधिकारी बैठा हुआ है। पार्श्‍वध्वनि में गाड़ियों की आवाज़ें उभरती हैं)

अधिकारी:(ऊँची आवाज़ में) नेक्स्ट प्लीज़!
(दो यात्री उसके पास जा कर अपने ’पहचान पत्र’ देते हैं। अधिकारी उन्हें उलट-पलट कर देखते हुए)
"-- ये फोटो आपकी ही है?"
यात्री 1: "जी हाँ, मेरी ही है।"
अधिकारी: (गौर से देखने के बाद)- "लगती तो नहीं..., लगता है फ़ोटो पुरानी है।"
यात्री 1: "पुरानी नई से क्या होता है- चेहरा तो वही है।"
अधिकारी: "मैं चेहरे की नहीं.. फ़ोटो की बात कर रहा हूँ मिस्टर - (सिटिज़नशिप के कार्ड को देखने के बाद- व्यंग से) ..हम्र ..तो आप कनेडियन सिटिज़न भी हैं।
यात्री 1: "आपको क्या लगता है?" (नाराज़गी के भाव से)
अधिकारी: "पूछ ही तो रहे हैं भाई, पूछने में पैसे लग रहे हैं क्या? आपके ज्ञान के लिए बता दें कन्फ़र्म करना हमारा काम है.. क्या समझे!"
यात्री 1: (कन्धे उचका कर) ओके... ओके..!
अधिकारी: ( उसको देखकर) "क्या बात है.. कन्धे क्यों हिला रहे हो.. कोई तकलीफ़ है?"
यात्री 1: "नहीं, नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं।
अधिकारी: "क्या नाम है?"
यात्री 1: "उसमें लिखा तो हुआ है।"
अधिकारी: "मैं आपसे पूछ रहा हूँ!"
यात्री 1: जी, बिन.... मिस्टर बिन।
अधिकारी: ओ बिन! लास्ट नेम ’लादेन’ तो नहीं!
यात्री 1: जी नहीं, विनय शर्मा है - विनय शर्मा! (नाराज़ होकर)
अधिकारी: देखिए मिस्टर नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं। हमारा काम है पूछना - आपका काम है जबाव देना। क्या समझे?
यात्री 1: जी, समझ गया!
अधिकारी: कहाँ जा रहे हो?
यात्री 1: न्यूयार्क!
अधिकारी: न्यूयार्क...! (एक साँस में कहता है) किसके पास - और क्यों, जा रहो हो तो क्यों जा रहे हो, कारण क्या है जाने का, कब तक लौटोगे? लौटने का इरादा है... या नहीं। अगर है तो कब तक? अगर नहीं तो क्यों? नाम, पता - फ़ोन नम्बर... क्या काम करता है? करता भी है या नहीं करता आपका क्या लगता है?
यात्री 1: जी - दोस्त-
अधिकारी: अकेला है या शादी-शुदा?
यात्री 1: अब तक तो अकेला था, अब शादी होने वाली है। उसी में जा रहे हैं।
अधिकारी: आपकी हुई...?
यात्री 1: जी नहीं।
अधिकारी: क्यों? क्यों नहीं हुई अब तक... क्या कारण है अब तक कुँवारे हो?
यात्री 1: बस यों ही।
अधिकारी: नहीं - नहीं, कोई न कोई कारण तो होगा इसके पीछे, जो अब तक शादी नहीं की। कोई साजिश तो नहीं?
यात्री 1: ये कैसी बातें कर रहें हैं आप?
अधिकारी: बात-, बात हम समझाते हैं। आजकल बम्ब नहीं, ह्यूमन बम्ब ज्यादा फूट रहे हैं जगह-जगह। वे - सब कंवारे थे, इसीलिए पूछ रहे हैं। और फिर शक करना हमारा काम ही है क्यों?
यात्री 1: एक बात कहें..।
अधिकारी: बोलो-बोलो!
यात्री 1: आप जो पूछें, जो भी करें - पर करें ज़रा जल्दी- वो क्या है कि धूप में बुरा हाल हो रहा है!
अधिकारी: लो -, करलो बात! अरे भैय्या, तुम्हें क्या लगता है, हम झक मार रहे हैं, भाई- पूछ रहे हैं, चेक कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं। ये देखो, इधर देखो, ये मैडल ऐसे ही नहीं मिले हैं, कुछ करके मिले हैं। (अचानक दूसरे यात्री को देखकर)
-ये कौन है आपके साथ।
यात्री 1: दोस्त।
अधिकारी: केवल दोस्त या और कुछ भी?
यात्री 1: (आश्चर्य से) क्या मतलब?
अधिकारी: बतायेंगे-बतायेंगे, मतलब भी बतायेंगे। कहाँ से आ रहे हो?
यात्री 1: टोरोंटो से।
अधिकारी: --टोरोंटो से!
यात्री 1: क्यों?
अधिकारी: अरे भाई! तुम्हारे इस टोरोंटो ने हमारा जीना हराम कर रखा है।
यात्री 1: वो - कैसे?
अधिकारी: पिछले एक महीने से, हमारे इधर से गाड़ी में दो आदमी सुबह ऐज़ ए फ़्रैन्ड जाते हैं, जब शाम को लौटते हैं तो बतौर पति-पत्नी के... है ना समस्या...। इसीलिए हमने आपके मित्र के बारे में पूछा कि वो केवल मित्र ही है या कुछ और... समझ गये मियाँ - वैसे आप दोस्त ही हैं ना।
यात्री 1: जी हाँ... हम केवल दोस्त ही हैं बस...बस...।
अधिकारी: माना आप दोस्त ही हैं.. लेकिन हम.. कैसे मान लें कि आप केवल दोस्त ही हैं.. कोई प्रूफ़ है आपके पास।
यात्री 1: प्रूफ़-। प्रूफ़ तो यही है कि हम दोस्त हैं तो हैं।
अधिकारी: थोड़ा सोचिए। विश्वास करने में समय तो लगेगा ही, है ना। एक तो आप कनेडियन हैं.. कनेडियन सिटिज़न भी हैं। उपर से टोरोंटो से आ रहे हैं। साथ में और कोई भी नहीं, केवल दो आदमियों के। अब आप ही बताईये ऐसे में हमारा शक्की होना बनता है कि नहीं...(कुछ सोच कर) आप यहीं ठहरें.. मैं अभी चेक करके आता हूँ।
(अधिकारी जाता है यात्री-2, यात्री-1 को कहता है)
यात्री 2: यार! लगता है, ये आज हमारा पोस्टमार्टम करके ही छोड़ेगा। ऊपर से ये गर्मी..., उफ़्‍फ़..! (इतने में अधिकारी आ जाता है)
अधिकारी: वैसे तो.. सब ठीक है लेकिन, आप लोगों के हाथों में अंगूठी देखकर थोड़ा शक सा हो रहा था...!
यात्री 1: देखिए, आपने जो पूछना है पूछिए - जो चेक करना है कीजिए - लेकिन हमें और हमारी ज़ाती ज़िन्दगी में झाँकने का आपका कोई हक नहीं है।
अधिकारी: बड़े तप्पे लग रहे हो - सुनो मिस्टर। हम अमेरिका वाले आपकी इस बात को आपकी धमकी समझें या....।
यात्री 1: (बात की नाजुकता को जानते हुए) अरे... नहीं, नहीं ऐसा नहीं जैसा आप सोच रहे हैं। मेरा मतलब वो बिल्कुल नहीं..।
अधिकारी: (गाड़ी की ओर देखकर रौब से) ये गाड़ी किसकी है।
यात्री 2: जी, मेरी!
अधिकारी: कागज़ हैं?
यात्री 2: (देते हुए) ये लीजिए।
अधिकारी: (मुयाना करते हुए) ये बम्पर कैसे मुड़ा?
यात्री 2: जी, भाई ने ठोक दी थी।अधिकारी:ठोक दी,या कहीं चोरी-उचक्की करते हुये ठुक गई! (पेपर और गाड़ी के नम्बर को मिलाकर देखते हुए अचानक)
अरे... ये नम्बर तो जाना-पहचाना लगता है।
यात्री 2: वो - कैसे?
अधिकारी: लो - करलो बात। हम यहीं पर यों ही नहीं बैठे हुए हैं। सरकार -हमें यों ही खांमख़्‍वाह पैसे नहीं देती। ये देखें... ये नम्बर आपका ही है ना!
यात्री 2: हाँ - नम्बर तो मेरा ही है।
अधिकारी: (पेपर घुमाकर) डब्लयू एच ज़ेड - जे 123 - (आश्चर्य से) ओ.. नो!!
यात्री 2: (घबराकर) क्या हुआ? दरअसल हम , डब्लयू एच ज़ेड जे 132 की तलाश में है।
यात्री 2: (आकाश की ओर हाथ जोड़ते हुए) थैंक्स गॉड!
अधिकारी: क्यों? क्या हुआ?
यात्री 2: जी, कुछ नहीं!
अधिकारी: ट्रंक खोलो।
यात्री 2: ट्रंक में कुछ नहीं है।
अधिकारी: जब मैंने कहा - खोला, तो खोलो।
यात्री 2: (ट्रंक खोलकर) ये लीजिए..। (अन्दर झाँककर कूलर को देखकर) इस कूलर में क्या है?
यात्री 2: जी, कुछ नहीं - केवल खाने-पीने का सामान और एक दो बियर - बस -!
अधिकारी: (खोलकर) ये क्या है..? स्टेक है।
अधिकारी: नहीं, नहीं, - ये तो नहीं जायेगा - ये जा ही नहीं सकता! इसे तो आप नहीं ले जायेंगे।
यात्री 2: क्यों?
अधिकारी: मैड काऊ का लफड़ा है.., इसकी तो जाँच होगी।
यात्री 2: लेकिन ये तो ’डियर’ का है।
अधिकारी: डियर का हो या काऊ का- है तो स्टेक ही ना...। क्यों, क्यों और वो भी कनेडियन - नो, नो हम कनेडियन पर भरोसा नहीं कर सकते!
(गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर अन्दर झाँकता है)
इसमें से तो पॉट की बदबू आ रही है।
यात्री 2: नहीं- इसमें कोई पॉट-वॉट नहीं और ना ही इसमें कुछ ऐसा है।
अधिकारी: सुनो! तुम हर बात में नहीं-नहीं कर रहे हो और एक-एक करके सब निकल रहा है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, उस पॉट को निकाल कर बाहर रखो!
यात्री 2: अरे होता तो रखते - स्वीयर टू गॉड! हमारे पास कुछ नहीं है।
(इस दौरान अधिकारी चीज़ें ढूँढता रहता है। थैला देखकर)
अधिकारी: इसमें क्या है?
यात्री 2: जी - फल हैं।
अधिकारी: इसे भी नहीं ले जा सकते। लेकिन क्यों?
अधिकारी: ये तो मिनीस्टर ऑफ़ एग्रीक्लचर से पूछना पड़ेगा!
(उसे कूड़े में डालता है)
यात्री 2: ये आप क्या कर रहे हैं?
अधिकारी: (रौब से) देखो! सरकारी काम में रुकावट करोगे तो नतीजा जानते हो, क्या होगा? (दोनों मुँह लटका कर खड़े हो जाते हैं। गर्मी के कारण पसीना-पसीना होते हैं। यात्री-1: रुमाल निकाल कर पसीना पोंछता है)
क्या बात है तुम दोनों को पसीना क्यों आ रहा है - (याद करके .. ’सार’ के बारे में)
अधिकारी: ओ.. नो! ओ... नो! ओ.. माई गॉड!! तभी तो कहूँ कि इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हें। (जेब से निकाल कर दस्ताने पहनता है मुँह पर कपड़ा लगाता है।)
यात्री 1: ये क्या बक रहे हैं आप - ऐसा कुछ नहीं है। आप बे-बात का बतंगड़ बना रहे हो। गर्मी के मारे बुरा हाल है और ऊपर से आप ’सार’ की बात थोप रहे हैं।
अधिकारी: अरे थोप नहीं रहे हैं - तुम्हें है!! तो फिर तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है?
यात्री 1: गर्मी के कारण।
अधिकारी: कारण कुछ और भी तो हो सकते हैं। हम कैसे मान लें कि तुम्हें पसीना गर्मी की वज़ह से ही आ रहा है..?
यात्री (दोनों): ...वी लीव यू.एस.
अधिकारी: आप दोनों उधर - उधर खड़े हो जायें। (जेब से पेन पेपर निकालते हुए, पूछता है-) - तुम्हारा फ़िज़िकल चेक-अप होने से पहले जो मैं पूछता हूँ उसका सही-सही जबाव दो।
-- इस दौरान तुम किसी हॉस्पीटल गये।
यात्री 1: जी नहीं।अधिकारी:घर में, रिश्ते में कोई नर्स-वर्स है जो हॉस्पीटल में काम करती हो।
यात्री 2: जी नहीं।
अधिकारी: किसी ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आए हो जिसे सार हो या होने की आशंका हो।
यात्री 1: जी नहीं।
अधिकारी: किसी ऐसे जन समारोह में गये हो जहाँ सार वाले हों।
यात्री 2: जी नहीं।
अधिकारी: ठीक है। आप उधर खड़े रहें मैं अपने बॉस से पूछता हूँ। (सेल-फ़ोन निकालकर)
हेलो,- जिम- सुनो, मुझे लगता है कि यहाँ सार वाले कई लोग लाइन में खड़े हैं जिन्हें पसीना आ रहा है। उनका पूरा चेक-अप करना होगा।
(जिम की आवाज़):यस यू आर राइट। मैं अभी पी.ए.से अनाऊंस करता हूँ--
अटेन्शन प्लीज़, अटेन्शन प्लीज़, कैनाडा से अमेरिका जाने वाले जितने भी यात्री हैं, जिन्हें पसीना आ रहा है, कृपया वो अलग लाइन में खड़े हो जाएँ-- तुरन्त! थैंक यू।
ये क्या लफड़ा है।अधिकारी: लफड़ा नहीं हक़ीकत - तुम तो जा ही नहीं सकते। तुम्हारे साथ एक नहीं कई लफड़े हैं। काऊ, सार, स्टेक, फल, पॉट और न जाने क्या क्या... सॉरी आप उधर... ओ ऊधर खड़े हो जाएँ।यात्री (दोनों):सुनिये... (इतने में लोगों का झुँड आता है जिसे अधिकारी धकेल रहा है। आवाज़ आती है--
- अरे मानते क्यों नहीं हमें सार नहीं !
- ये पसीना धूप का है!
- अरे सुनिए तो सही!
- आप इन्सान हैं या हैवान!
- ये तो सरासर ज्यादती है!
- आप पुलिस क्यों बनते हैं हर जगह - समझ नहीं आती!
धीरे धीरे लाइट बन्द होती है। एक आवाज़ उभरती है----
नेक्स्ट प्लीज़
जब अमेरिका ने इराक़ पर अटैक किया था तब कनाडा ने बुश को साफ़ कहा कि वो उसके साथ नही है बुश तब बहुत नाराज हुआ और उसने कनाडियनो को बेबात में तंग करना शुरू कर दिया


सारांश:- अमेरिका ने जब इराक पर आक्रमण किया तब कनाडा ने उसके इस युद्ध में भाग लेने से इन्कार कर दिया। एक मामले में उसका साथ नहीं दिया, साथ न देने पर अमेरिका कनाडा से बुरी तरह नराज़ है और तब से खिसियाया हुआ है कि जब जहाँ हो उससे बदला लिया जाये। बॉर्डर क्रासिंग इसका ताज़ा उदाहरण है।
पात्र: कस्टम अधिकारी (अमेरिका)
दो यात्री - 1, 2 (कनेडियन)
समय:दिन का।
स्थान: नियाग्रा फ़ाल, पीस ब्रिज
( पर्दा खुलता है, मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश उभरता है। एक मेज़-कुर्सी - उस पर कस्टम अधिकारी बैठा हुआ है। पार्श्‍वध्वनि में गाड़ियों की आवाज़ें उभरती हैं)

अधिकारी:(ऊँची आवाज़ में) नेक्स्ट प्लीज़!
(दो यात्री उसके पास जा कर अपने ’पहचान पत्र’ देते हैं। अधिकारी उन्हें उलट-पलट कर देखते हुए)
"-- ये फोटो आपकी ही है?"
यात्री 1: "जी हाँ, मेरी ही है।"
अधिकारी: (गौर से देखने के बाद)- "लगती तो नहीं..., लगता है फ़ोटो पुरानी है।"
यात्री 1: "पुरानी नई से क्या होता है- चेहरा तो वही है।"
अधिकारी: "मैं चेहरे की नहीं.. फ़ोटो की बात कर रहा हूँ मिस्टर - (सिटिज़नशिप के कार्ड को देखने के बाद- व्यंग से) ..हम्र ..तो आप कनेडियन सिटिज़न भी हैं।
यात्री 1: "आपको क्या लगता है?" (नाराज़गी के भाव से)
अधिकारी: "पूछ ही तो रहे हैं भाई, पूछने में पैसे लग रहे हैं क्या? आपके ज्ञान के लिए बता दें कन्फ़र्म करना हमारा काम है.. क्या समझे!"
यात्री 1: (कन्धे उचका कर) ओके... ओके..!
अधिकारी: ( उसको देखकर) "क्या बात है.. कन्धे क्यों हिला रहे हो.. कोई तकलीफ़ है?"
यात्री 1: "नहीं, नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं।
अधिकारी: "क्या नाम है?"
यात्री 1: "उसमें लिखा तो हुआ है।"
अधिकारी: "मैं आपसे पूछ रहा हूँ!"
यात्री 1: जी, बिन.... मिस्टर बिन।
अधिकारी: ओ बिन! लास्ट नेम ’लादेन’ तो नहीं!
यात्री 1: जी नहीं, विनय शर्मा है - विनय शर्मा! (नाराज़ होकर)
अधिकारी: देखिए मिस्टर नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं। हमारा काम है पूछना - आपका काम है जबाव देना। क्या समझे?
यात्री 1: जी, समझ गया!
अधिकारी: कहाँ जा रहे हो?
यात्री 1: न्यूयार्क!
अधिकारी: न्यूयार्क...! (एक साँस में कहता है) किसके पास - और क्यों, जा रहो हो तो क्यों जा रहे हो, कारण क्या है जाने का, कब तक लौटोगे? लौटने का इरादा है... या नहीं। अगर है तो कब तक? अगर नहीं तो क्यों? नाम, पता - फ़ोन नम्बर... क्या काम करता है? करता भी है या नहीं करता आपका क्या लगता है?
यात्री 1: जी - दोस्त-
अधिकारी: अकेला है या शादी-शुदा?
यात्री 1: अब तक तो अकेला था, अब शादी होने वाली है। उसी में जा रहे हैं।
अधिकारी: आपकी हुई...?
यात्री 1: जी नहीं।
अधिकारी: क्यों? क्यों नहीं हुई अब तक... क्या कारण है अब तक कुँवारे हो?
यात्री 1: बस यों ही।
अधिकारी: नहीं - नहीं, कोई न कोई कारण तो होगा इसके पीछे, जो अब तक शादी नहीं की। कोई साजिश तो नहीं?
यात्री 1: ये कैसी बातें कर रहें हैं आप?
अधिकारी: बात-, बात हम समझाते हैं। आजकल बम्ब नहीं, ह्यूमन बम्ब ज्यादा फूट रहे हैं जगह-जगह। वे - सब कंवारे थे, इसीलिए पूछ रहे हैं। और फिर शक करना हमारा काम ही है क्यों?
यात्री 1: एक बात कहें..।
अधिकारी: बोलो-बोलो!
यात्री 1: आप जो पूछें, जो भी करें - पर करें ज़रा जल्दी- वो क्या है कि धूप में बुरा हाल हो रहा है!
अधिकारी: लो -, करलो बात! अरे भैय्या, तुम्हें क्या लगता है, हम झक मार रहे हैं, भाई- पूछ रहे हैं, चेक कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं। ये देखो, इधर देखो, ये मैडल ऐसे ही नहीं मिले हैं, कुछ करके मिले हैं। (अचानक दूसरे यात्री को देखकर)
-ये कौन है आपके साथ।
यात्री 1: दोस्त।
अधिकारी: केवल दोस्त या और कुछ भी?
यात्री 1: (आश्चर्य से) क्या मतलब?
अधिकारी: बतायेंगे-बतायेंगे, मतलब भी बतायेंगे। कहाँ से आ रहे हो?
यात्री 1: टोरोंटो से।
अधिकारी: --टोरोंटो से!
यात्री 1: क्यों?
अधिकारी: अरे भाई! तुम्हारे इस टोरोंटो ने हमारा जीना हराम कर रखा है।
यात्री 1: वो - कैसे?
अधिकारी: पिछले एक महीने से, हमारे इधर से गाड़ी में दो आदमी सुबह ऐज़ ए फ़्रैन्ड जाते हैं, जब शाम को लौटते हैं तो बतौर पति-पत्नी के... है ना समस्या...। इसीलिए हमने आपके मित्र के बारे में पूछा कि वो केवल मित्र ही है या कुछ और... समझ गये मियाँ - वैसे आप दोस्त ही हैं ना।
यात्री 1: जी हाँ... हम केवल दोस्त ही हैं बस...बस...।
अधिकारी: माना आप दोस्त ही हैं.. लेकिन हम.. कैसे मान लें कि आप केवल दोस्त ही हैं.. कोई प्रूफ़ है आपके पास।
यात्री 1: प्रूफ़-। प्रूफ़ तो यही है कि हम दोस्त हैं तो हैं।
अधिकारी: थोड़ा सोचिए। विश्वास करने में समय तो लगेगा ही, है ना। एक तो आप कनेडियन हैं.. कनेडियन सिटिज़न भी हैं। उपर से टोरोंटो से आ रहे हैं। साथ में और कोई भी नहीं, केवल दो आदमियों के। अब आप ही बताईये ऐसे में हमारा शक्की होना बनता है कि नहीं...(कुछ सोच कर) आप यहीं ठहरें.. मैं अभी चेक करके आता हूँ।
(अधिकारी जाता है यात्री-2, यात्री-1 को कहता है)
यात्री 2: यार! लगता है, ये आज हमारा पोस्टमार्टम करके ही छोड़ेगा। ऊपर से ये गर्मी..., उफ़्‍फ़..! (इतने में अधिकारी आ जाता है)
अधिकारी: वैसे तो.. सब ठीक है लेकिन, आप लोगों के हाथों में अंगूठी देखकर थोड़ा शक सा हो रहा था...!
यात्री 1: देखिए, आपने जो पूछना है पूछिए - जो चेक करना है कीजिए - लेकिन हमें और हमारी ज़ाती ज़िन्दगी में झाँकने का आपका कोई हक नहीं है।
अधिकारी: बड़े तप्पे लग रहे हो - सुनो मिस्टर। हम अमेरिका वाले आपकी इस बात को आपकी धमकी समझें या....।
यात्री 1: (बात की नाजुकता को जानते हुए) अरे... नहीं, नहीं ऐसा नहीं जैसा आप सोच रहे हैं। मेरा मतलब वो बिल्कुल नहीं..।
अधिकारी: (गाड़ी की ओर देखकर रौब से) ये गाड़ी किसकी है।
यात्री 2: जी, मेरी!
अधिकारी: कागज़ हैं?
यात्री 2: (देते हुए) ये लीजिए।
अधिकारी: (मुयाना करते हुए) ये बम्पर कैसे मुड़ा?
यात्री 2: जी, भाई ने ठोक दी थी।अधिकारी:ठोक दी,या कहीं चोरी-उचक्की करते हुये ठुक गई! (पेपर और गाड़ी के नम्बर को मिलाकर देखते हुए अचानक)
अरे... ये नम्बर तो जाना-पहचाना लगता है।
यात्री 2: वो - कैसे?
अधिकारी: लो - करलो बात। हम यहीं पर यों ही नहीं बैठे हुए हैं। सरकार -हमें यों ही खांमख़्‍वाह पैसे नहीं देती। ये देखें... ये नम्बर आपका ही है ना!
यात्री 2: हाँ - नम्बर तो मेरा ही है।
अधिकारी: (पेपर घुमाकर) डब्लयू एच ज़ेड - जे 123 - (आश्चर्य से) ओ.. नो!!
यात्री 2: (घबराकर) क्या हुआ? दरअसल हम , डब्लयू एच ज़ेड जे 132 की तलाश में है।
यात्री 2: (आकाश की ओर हाथ जोड़ते हुए) थैंक्स गॉड!
अधिकारी: क्यों? क्या हुआ?
यात्री 2: जी, कुछ नहीं!
अधिकारी: ट्रंक खोलो।
यात्री 2: ट्रंक में कुछ नहीं है।
अधिकारी: जब मैंने कहा - खोला, तो खोलो।
यात्री 2: (ट्रंक खोलकर) ये लीजिए..। (अन्दर झाँककर कूलर को देखकर) इस कूलर में क्या है?
यात्री 2: जी, कुछ नहीं - केवल खाने-पीने का सामान और एक दो बियर - बस -!
अधिकारी: (खोलकर) ये क्या है..? स्टेक है।
अधिकारी: नहीं, नहीं, - ये तो नहीं जायेगा - ये जा ही नहीं सकता! इसे तो आप नहीं ले जायेंगे।
यात्री 2: क्यों?
अधिकारी: मैड काऊ का लफड़ा है.., इसकी तो जाँच होगी।
यात्री 2: लेकिन ये तो ’डियर’ का है।
अधिकारी: डियर का हो या काऊ का- है तो स्टेक ही ना...। क्यों, क्यों और वो भी कनेडियन - नो, नो हम कनेडियन पर भरोसा नहीं कर सकते!
(गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर अन्दर झाँकता है)
इसमें से तो पॉट की बदबू आ रही है।
यात्री 2: नहीं- इसमें कोई पॉट-वॉट नहीं और ना ही इसमें कुछ ऐसा है।
अधिकारी: सुनो! तुम हर बात में नहीं-नहीं कर रहे हो और एक-एक करके सब निकल रहा है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, उस पॉट को निकाल कर बाहर रखो!
यात्री 2: अरे होता तो रखते - स्वीयर टू गॉड! हमारे पास कुछ नहीं है।
(इस दौरान अधिकारी चीज़ें ढूँढता रहता है। थैला देखकर)
अधिकारी: इसमें क्या है?
यात्री 2: जी - फल हैं।
अधिकारी: इसे भी नहीं ले जा सकते। लेकिन क्यों?
अधिकारी: ये तो मिनीस्टर ऑफ़ एग्रीक्लचर से पूछना पड़ेगा!
(उसे कूड़े में डालता है)
यात्री 2: ये आप क्या कर रहे हैं?
अधिकारी: (रौब से) देखो! सरकारी काम में रुकावट करोगे तो नतीजा जानते हो, क्या होगा? (दोनों मुँह लटका कर खड़े हो जाते हैं। गर्मी के कारण पसीना-पसीना होते हैं। यात्री-1: रुमाल निकाल कर पसीना पोंछता है)
क्या बात है तुम दोनों को पसीना क्यों आ रहा है - (याद करके .. ’सार’ के बारे में)
अधिकारी: ओ.. नो! ओ... नो! ओ.. माई गॉड!! तभी तो कहूँ कि इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हें। (जेब से निकाल कर दस्ताने पहनता है मुँह पर कपड़ा लगाता है।)
यात्री 1: ये क्या बक रहे हैं आप - ऐसा कुछ नहीं है। आप बे-बात का बतंगड़ बना रहे हो। गर्मी के मारे बुरा हाल है और ऊपर से आप ’सार’ की बात थोप रहे हैं।
अधिकारी: अरे थोप नहीं रहे हैं - तुम्हें है!! तो फिर तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है?
यात्री 1: गर्मी के कारण।
अधिकारी: कारण कुछ और भी तो हो सकते हैं। हम कैसे मान लें कि तुम्हें पसीना गर्मी की वज़ह से ही आ रहा है..?
यात्री (दोनों): ...वी लीव यू.एस.
अधिकारी: आप दोनों उधर - उधर खड़े हो जायें। (जेब से पेन पेपर निकालते हुए, पूछता है-) - तुम्हारा फ़िज़िकल चेक-अप होने से पहले जो मैं पूछता हूँ उसका सही-सही जबाव दो।
-- इस दौरान तुम किसी हॉस्पीटल गये।
यात्री 1: जी नहीं।अधिकारी:घर में, रिश्ते में कोई नर्स-वर्स है जो हॉस्पीटल में काम करती हो।
यात्री 2: जी नहीं।
अधिकारी: किसी ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आए हो जिसे सार हो या होने की आशंका हो।
यात्री 1: जी नहीं।
अधिकारी: किसी ऐसे जन समारोह में गये हो जहाँ सार वाले हों।
यात्री 2: जी नहीं।
अधिकारी: ठीक है। आप उधर खड़े रहें मैं अपने बॉस से पूछता हूँ। (सेल-फ़ोन निकालकर)
हेलो,- जिम- सुनो, मुझे लगता है कि यहाँ सार वाले कई लोग लाइन में खड़े हैं जिन्हें पसीना आ रहा है। उनका पूरा चेक-अप करना होगा।
(जिम की आवाज़):यस यू आर राइट। मैं अभी पी.ए.से अनाऊंस करता हूँ--
अटेन्शन प्लीज़, अटेन्शन प्लीज़, कैनाडा से अमेरिका जाने वाले जितने भी यात्री हैं, जिन्हें पसीना आ रहा है, कृपया वो अलग लाइन में खड़े हो जाएँ-- तुरन्त! थैंक यू।
ये क्या लफड़ा है।अधिकारी: लफड़ा नहीं हक़ीकत - तुम तो जा ही नहीं सकते। तुम्हारे साथ एक नहीं कई लफड़े हैं। काऊ, सार, स्टेक, फल, पॉट और न जाने क्या क्या... सॉरी आप उधर... ओ ऊधर खड़े हो जाएँ।यात्री (दोनों):सुनिये... (इतने में लोगों का झुँड आता है जिसे अधिकारी धकेल रहा है। आवाज़ आती है--
- अरे मानते क्यों नहीं हमें सार नहीं !
- ये पसीना धूप का है!
- अरे सुनिए तो सही!
- आप इन्सान हैं या हैवान!
- ये तो सरासर ज्यादती है!
- आप पुलिस क्यों बनते हैं हर जगह - समझ नहीं आती!

धीरे धीरे लाइट बन्द होती है। एक आवाज़ उभरती है----
नेक्स्ट प्लीज़

6 comments:

  1. हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे। बढ़िया लिखें ..हजारों शुभकामनांए

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  2. बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. Yaar zamaane ko iiana mat dikha ,
    har soorat ke neeche daancha hain
    Kavi Deepak Sharma
    http://www.kavideepaksharma.co.in
    http://shayardeepaksharma.blogspot.com

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  4. आपका चिट्ठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है

    मेरे ब्लॉग पर पधारें आपका स्वागत है

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