Wednesday, December 24, 2008

सुन बे हृदयविहीन प्राणी

आदमी को गधा कह लो, खोता कह लो, सुआर कह लो, कुत्ता कह लो सब चलेगा और वो किसी हद तक इन शब्दों को अपने जीवन में एक नहीं कई बार सुन चुका है बल्कि उसे इन शब्दों से कई बार पुकारा और बुलाया भी जाता रहा है ! वो किसी हद तक इन को सुनकर अपना संयम नहीं खोता लेकिन, अगर कोई उसे किन्नर से जोड़ता है तो, वो, उसे अपने स्वाभिमान और मनुष्य जात होने पर चोट समझता है अब सवाल उठता है की क्या किन्नर आदमी नहीं है ? इसका जबाब अगर कोई यू एन ओ से भी जाकर पूछे तो इसका उत्तर उनके पास भी नहीं होगा तो फिर वहाँ आप और मैं किस खेत की मूली है ! कभी अगर इसपर चर्चा चलती है तो कोई कहता है बेचारे हैं तो, कुछ कहते है वक़्त के मारे हैं ! कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि इनसे आदमी को ना तो कोई नुक्सान ही है और ना ही कोई फायदा ! आज जब दुनिया मतलबी हो गई है ! स्वार्थ सर चढ़कर बोलता है! भाई भाई का गला काट रहा है ! ज़रा ज़रा सी बात पर लोग एक दुसरे के खून के प्यासे है ! ये सब घटिया और घिनौने काम आदम ही करता है क्या कभी आपने सुना की किसी किन्नर ने अपने दूसरे किन्नर का खून किया हो ? उसने अपने भाई जात को मारा हो ? अरे, समय ने जिसे पहिले मारा हो वो भला किसे को क्या मारेगा ? मरने मारने की बात तो वो करता है जिसकी कोई चाह हो ! उसकी चाह पर तो पैदा होते ही अंकुश लगा दिये गए हैं ! वो तो आदम जात की किसी भी चीज़ से नफरत नहीं करता है और नहीं वो किसी पास पड़ोस वालों के लड़ाई झगड़े से सरोकार रखता है ! उसकी तो कोई सुननेवाला ही नहीं ! जिसे कुदरत ने भी सांसारिक अधिकारों से वंचित रखा फिर इंसान का क्या कहना ! सभ्यता के इस युग में उसे किसी भी क्षेत्र में कोई वोट देने या अपनी बात रखने का अधिकार नहीं है ... हाँ अधिकार है तो, केवल लोगों की जिल्लत खाने का .....सरे अपमानित होने का अभी हाल में भारत की राजधान देहली आतंकियों के आतंक से दहल ऊठी थी ! बम के धमाकों से सड़कों में खून से लथपथ बच्चे बूढ़े जवान स्त्री पुरुष दर्द से चीखते चिल्ला रहे थे ! उनमें से कुछ इस दुनिया को छोड़ चुके थे तो कुछ जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे थे ! हस्पतालों में डॉक्टर के सामने सबसे बड़ी समस्या ये थी इन घायलों को कैसे बचाया जाय ! उन्हें खून की बहुत आवश्यकता पड़ रही थी ! इंसानियत के नाते उन्होंने जनता से अपील की कि आओ आगे बढ़कर अपना खून दें ! इस मार्मिक अपील से हस्पतालों के आगे लोगों का जमघट लगने लगा ! इस मुसीबत की घड़ी में हर आदमी आगे आया ! दयाभाव और हृदय तो सब में होता है चाहे वो किन्नर क्यों ना हो ? किन्नर लोग जब हस्पताल पहुँचे तो देखा सब एक लाइन में लगे हैं उन्हें देखकर उनको थोड़ा चैन आया वरना अगर दो लाइनें होतीं तो उनके सामने दुविधा होती कि वो किस लाइन (काश भारत के संविधान में इनके लिए कोई स्पेशल रूल होता) में जाकर खड़े हो ! प्रभु ने यहाँ पर उनकी लाज बचा दी जैसे उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी महाभारत में ! खड़े खड़े वो अपने बारी का इंतज़ार करने लगे ! जैसे ही उनका नम्बर आया डॉक्टर ने यह कहकर उनका खून लेने से मना कर दिया की वो किन्नर है .......... सुना था कि डॉक्टर भगवान् का रूप होता है अगर भगवान् ही ऐसा करने लगे तो ये बेचारे जाएँ तो जाएँ कहाँ ! अब भला डॉक्टर को कौन समझाए की पहिले तो इंसान है ! आदमी की जात का है ! उसमें भी वो सरे गुण भाव मौजूद हैं जो तुझ में, हम में, हम सब में हैं ! उसकी नसों में भी वही खून दौड़ता है जो तेरी की रगों में दौड़ रहा है ! और एक बात जिनका खून लेने से आप इनकार कर रहे हैं इनका एहसान तो आप दे ही नहीं सकते ! इनकी वजह से जिस भारत में आज आप डॉक्टर बने हो, ये ही हैं जो इस भारत को उस महाभारत के युग से बचाकर लाये ! अगर इनका जात भाई शिखंडी ने ठीक समय पर अर्जुन के रथ में उसके सामने खड़े होकर उसकी सहायता न की होती तो उस समय के अजय अमर अपराजय भीष्म पितामह की बाणों के आगे पांडव तो पांडव क्या कोई टिकनेवाला था ! ये ही लोग हैं जिनकी वजह से हम सब है वरना आज का इतिहास कुछ और ही होता ! अगर गौर से सोचो तो ऐसा करके डॉक्टर ने इनके विषय पर एक बहस शुरू कर दी ! जो बहुत पहिले हो जानी चाहिए थी ताकि इनके मुद्दे की तपन सियासत के गलियारे तक जा कर उन्हें झँझोड़ती तो सही जो अपने अंदर के आदमी में झाँककर इनके बारे में सोच पैदा करता ! जो राजनीति करते करते जिनका खून दोगला हो गया है ! काश कोई तो इनके बारे में आवाज़ उठाता ! कोई तो ऐसा कानून बनता जो इन्हें किसी हाशिये पर लाकर खड़ा कर सकता।

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया कहा. व्यंग्य की धार कुछ और तेज़ होती तो और भी अच्छा होता.

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