Sunday, February 22, 2009

अनहोनी पाराशर गौड़

मिसेज कान्ति बत्रा अपने पति व दो बेटियों कला व मोनिका के साथ न्यू कोर्ट के कमरा नंबर 326 में अपने 20 साल के बेटे मनजीत के पेश होने का इन्तजार कर रही थी। मनजीत पर "बिना रजिस्ट्रड फायर आर्म" रखने व एक मासूम की हत्या का आरोप लगा हुआ था।
कमरा खचाखच भरा हुआ था। कान्ति के साथ और भी कई लोग अपने अपने चाहने वालो के केस के लिए वहाँ पर आये हुए थे। सबके सब जज के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बेंच पर बैठी कान्ति पथराई निगाहों से जज की खाली कुर्सी को एक टक होकर निहार रही थी। सोचने लगी कि ये क्या हो गया। उसकी वर्षों की मेहनत से बना बनाया घर पल में ही उसके आँखो के सामने टूटकर चूरचूर हो गया। मनजीत के कोर्ट सज्जा के बारे में सोचते सोचते वो घटित पूरी घटना एक फिल्म की तरह उसके मानस पटल पर रेंगने लगी।
आज से 30 साल पहले ठीक आज के ही दिन जब वो और रजनीश भारत से कैनडा आ रहे थे तब कितनी उमंग और जोश था दोनों में एक नई जगह आने के लिए। एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत के लिए।
कैनडा आने पर जैसा सोचा था वैसा हुआ नहीं। शुरू शुरू में तो कई बार दोनों ने वापस जाने का भी मन बना लिया था। रात दिन कड़ी मेहनत करके कुछ दिनों के बाद उन्होनें अपने पैर जमा लिये। इस दौरान कान्ति माँ बन गयी। मनजीत उनके जीवन में नई रोशनी व ढेर सारी उम्मीदों को लेकर आया था। पूरा घर उसकी किलकारियों से गूँज उठा। मनजीत को गोदी में लेकर कान्ति रजनीश से बोली ...
"मै तो इसे वकील बनाऊँगी ..."
"...अच्छा..." हँसते हुए रजनीश ने कहा।
फिर शरारती भाव में उसने कान्ति से कहा... , " इसे तो आप वकील बनाओगी माना और जो बाद में आयेंगे उन्हें क्या बनायेगी?"
फटाक से बिना देर किये कान्ति ने उत्तर दिया ... " एक को डाक्टर दूसरे को इंजिनियर और तीसरे को ..." वो कुछ कहती उसकी बात को बीच में ही काटते हुए रजनीश बोल पडा...... "अरे बस भी करो भाई.........फुटबाल की टीम बनानी है क्या?" ये सुन कर दोनों खिल खिलाकर हँस दिये।
कुछ समय के बाद कान्ति ने अपने माँ बाप भाई बहिनों को बुला लिया जो उसके कामों में हाथ बँटाते रहे। समय गुजरता चला गया। बदलते समय की धारा के साथ साथ उनका जीवन की धारा में भी बदलाव आया। मनजीत के बाद कला, मोनिका व रुची ने उनके जीवन में आकर और भी खुशहाली भर दी।
रुची आज 5 साल की हो गई थी, मोनिका 8 की, कला 15 की और मनजीत 20 का। रुची के जन्म दिन पर ढेर सारे उपहार देने के बाद कान्ति भगवान का धन्यवाद देना नहीं भूली।
"...प्रभो आपकी बड़ी अनुकम्पा रही मेरे और मेरे परिवार पर। मैंने जो चाहा आपने दिया। हम आपके ऋणी है। बस... अब इतनी और कृपा करना प्रभो कि ये पढ़ लिखकर अच्छी नौकरीयों पर लग जायें, खासकर मनजीत... मनजीत पर अपना हाथ ज़रूर रखना ...प्रभो।"
मनजीत यूँ तो पढ़ाई में होशियार था, लेकिन लड़ाई झगड़ों में भी पीछे न रहने कारण माँ बाप को हमेशा एक डर सताता रहता था कि कहीं बेकार के लफड़ों में फंस कर अपनी पढ़ाई चौपट न करदे। कला उसके ठीक विपरीत थी। वो घर पर मम्मी का घर के कामकाजों में हाथ बँटाती। अपने छोटी बहिनों को देखती। उनकी बेबी सिटिंग करती। स्कूल में औरों के लिए वो एक रोल माडल थी। सबकी मदद करना उसकी कमजोरी थी। स्कूल में टीचर उसे "मदर ट्रीसा" कह कर पुकारते थे।
समय का फेर क्या दिन दिखाये ये कोई नही जानता। कान्ति के हरे भरे परिवार पर भी एक दिन समय की ऐसी गाज गिरी कि उसके परिवार की नींव हिलकर रह गई।
क्रिसमिस के उपलक्ष्य पर सारा शहर अपने अपने अनुसार अपने परिवार के सदस्यों व इष्ट मित्रों के लिए उपहारो की खरीदो फरोख़्‍त में लगा हुआ था, तो कोई घरों की सजावटों में।
कान्ति भी हर साल की तरह इस बार भी व्यस्त थी। वो ताहेफ़ों की लिस्ट को देखकर काट-छाँट करके जो बच गया था उसको अलग पेपर पर लिखकर, कल की शापिंग की लिस्ट में शामिल करने में लगी हुई थी। उसे क्या पता था कि आने वाला दिन उसके लिए एक दर्दनाक तोहफ़ा लेकर आ रहा है जो उसे हमेशा के लिए बदल देगा। उस मनहूस दिन को याद करके उसकी आँखों से आँसूओं की धारा बहने लगी।
कला ने मम्मी की आँखों से उमड़ते आँसुओं के सेलाब को देखा तो आहिस्ते से मम्मी का हाथ अपने हाथों में लेकर धीरे से सहलाया। आँसू पोंछे और कहा "...ममा रोयें मत। सब ठीक हो जायेगा।"
उस दिन कान्ति जल्दी उठ गई थी। नाश्ता पानी घर की साफ-सफाई चौका चुल्हा करके वो रजनीश से बोली ...
"...अज्जी सुनते हो...कुछ गिफ्‍़ट रह गये हैं। आप तयार हो जाइये, शापिंग करने जाना है..."
"हम तैयार हैं।" रजनीश ने पलट कर कहा। थोड़ी देर में कान्ति नीचे आकर गिफ्‍़ट की लिस्ट को उठाते हुये बोली...चलिए...
जाने से पूर्व कान्ति ने कला को आवाज दी ..., "कला बेटे..."
अन्दर से आवाज आई ..."जी मम्मी......"
"बेटा हम बाहर जा रहे हैं, घर का ख्याल रखाना...और हाँ...... मोनिका और रुची उठ जायें तो उन्हे नाश्ता करवा देना।"
"...जी मम्मी।"
"उन्हें बाहर मत जाने देना।"
"...जी मम्मी।" दोनों गाड़ी में बैठकर डाउन टाउन की ओर चल दिये शापिंग के लिए।
मोनिका रुची उठ चुकी थी। कला ने उन्हे नाश्ता करवा दिया था। तीनों टी. वी. देख रही थीं कि अचानक मोनिका ने कला से पूछा, "...दीदी मैं और रुची ऊपर खेलें।"
"...हाँ......हाँ खेलो लेकिन चीजें इधर उधर मत फेंकना, वरना मम्मी मारेगी।"
"नहीं हम नहीं फेंकेगे ......" दोनों ने एक साथ कहा और कहते ही ऊपर की मंजिल की ओर दौड़ पड़ीं। कला टी वी देखने में मस्त हो गई और वो दोनों ऊपर के कमरे में एक दूसरे के ऊपर तकिया फेंकने में लग गईं। जाने कब टी वी देखते देखते कला की आँख लग गई वो सोफे में लुढ़क गई।
ऊपर दोनों कमरों-कमरों में घुस-घुस कर ’हाईड और सीक’ खेल रहे थे। खेलते-खेलते मोनिका मनजीत के कमरे में घुस गई। वहाँ उसने उसके बिस्तर का गद्दा उठाया। ज्यों ही वे उसके अदंर घुसने जा रही थी, उसे एक पिस्तौल पड़ी दिखाई दी। मोनिका ने रुची को आवाज़ दी... "रुची ..."
रुची भाग कर मनजीत के कमरे की ओर लपकी। मोनिका के हाथ में पिस्तौल को देखकर उसने उससे पूछा......
"ये क्या है दीदी......"
"ये...ये बंदूक है बंदूक।" उसने रुची से कहा..."सुन अब हम चोर सिपाही का खेल खेलेंगे क्यों?"

रुची बोली... "लेकिन सिपाही मैं बनूँगी।"
"नहीं मैं बनूँगी......", मोनिका ने रौब से कहा, "सिपाही बड़ा होता है और चोर छोटा। तू छोटी है इसलिए तू चोर बनेगी।"
तुनक कर रुची बोली..."तू हमेशा बड़े होने क्यों रौब जताती रहती है?"
"...क्योंकि मै बड़ी हूँ इसलिए... चल तैयार हो जा ...।"
सुनकर जैसे रुची जाने लगी पीछे से मोनिका ने कहा...
"...अररर सुन... तू भागेगी तो मैं कहूँगी रुक ...रुक... रुकजा वरना गोली मार दूँगी, तू ना एक बार मुझे देखियो और फिर भाग जाइयो ...ठीक है ना।"
रुची ने सिर हिलाकर उसका समर्थन किया।
दोनों कमरे कमरों व लाबी में भाग भागकर ऊधम चौकड़ी मचा रहे थे। रुची जैसे ही कमरे से बाहर लाबी में आई पीछे से मोनिका ने पिस्तौल का निशान रुची पर साधते हुए कहा... "रुक जा ...मै कहती हूँ... रुकजा वरना गोली मार दूँगी। रुची पलभर के लिए रुकी। उसकी ओर मुड़ी। अपनी निश्छल हँसी को हँसते हुए मुड़ कर भागी। इतने में मोनिका फिर कहा ... "रुकजा... वरना गोली मार दूँगी।"
रुची मुशकिल से 10 कदम भी नही दौड़ी थी कि धड़ाम की आवाज के साथ गोली निकल कर सीधे रुची की पीठ को भेदती हुई सामने की दीवार में जा धंसी। रुची को गोली लगते ही, वो धड़ाम से फर्श पर गिर गई। पीठ से खून का फुब्बारा फूट कर बहने लगा, जिसे देखकर मोनिका हतप्रभ रह गई।
गोली चलने के धमाके की आवाज से कला एकाएक चौंककर उठ बैठी। इधर ऊधर देखकर उसने मोनिका और रुची को आवाजें लगाई.. " ...मोनिका...... रुची..." दो तीन बार आवाज लगाने बाद भी जब कोई जबाब नहीं मिला तो वो भागकर ऊपर की ओर लपकी। जो कुछ उसने वहाँ जाकर देखा। उसे देखकर उसके पाँव के नीचे की जमीन खिसक गई। रुची... औंधे मुँह जमीन पर गिरी खून के तालाब में सनी पड़ी थी। दूसरी ओर एक कोने में अपने घुटनों के बीच में डरके मारे अपना सर छुपाये मोनिका डर के मारे थरथर काँप रही थी। पास में पड़ा था वो पिस्तौल जिससे गोली चली थी। कला को स्थिति समझते देर नहीं लगी।

"...हे भगवान...... ये क्या हो गया। मै मम्मी को क्या कहूँगी। क्या जबाब दूँगी मैं उन्हें?" उसे कुछ नही सूझ रहा था। हिम्मत करके उसने पुलिस को फ़ोन किया ...... " ".........हलो, पुलिस...। जी...मै हाऊस नम्बर 55 ग्रीन ड्राइव, स्कारबोरो से बोल रही हूँ जल्दी आइये मेरी छोटी बहिन को गोली लग गई है प्लीज़ ......हरी.........। "
चन्द मिनट में पुलिस आ पहुँची। आते ही उन्होने सारी सड़क को सील कर दिया। पुलिस रुची को लेकर पास के हस्पताल चली गई। कुछ पुलिस वाले कला व मोनिका से घटना के बारे में पूछकर सूत्रों को इकट्‍ठा करने में जुट हुई थी।

कान्ति ने रजनीश से कहा ...
"सबके लिये तो ले लिये, बस एक गुड़िया रुची के लिए लेकर चलते है।"
रजनीश ने कहा... "ठीक है लेकिन जरा जल्दी कीजिये बहुत देर हो गई है। वे सब कह रही होंगी कि मम्मी पापा जाने कहाँ गायब हो गये।"
जैसे ही वे घर की गली के पास पहँचे तो देखा गली बन्द। पुलिस वाला ट्रैफिक को दूसरी गली की ओर इशारा करके उन्हे उधर से जाने को कह रहा था। पहले तो उन्होंने सोचा कि शायद कोई "ब्रेकइन" हुई होगी। इसीलिए शायद गली बंद है, कान्ति ने रजनीश से पूछा ..."क्यों हुई होगी हमारी गली बंद?"
"मालूम नहीं ... लेकिन फ़ॉर श्योर...... कुछ ना कुछ तो अवश्य हुआ है।"
कान्ति बोली, "रुको, मैं पता करती हूँ कि क्या बात है।" गाड़ी से उतर कर जैसे वह पुलिस के पास पहुँची उसने उससे पूछा... "आफिसर ये गली क्यों बंद है ..."
"...... 55 में किसी को गोली लगी है।" उस आफिसर ने दो टूक में जबाब दिया।
"...क्या कहा...?"
"55 नम्बर में किसीको गोली लगी है मैडम।" पुलिस का उत्तर सुन कर कान्ति का मन जोर जोर से धड़कने लगा। सोचने लगी कि कहीं मनजीत को तो कहीं किसने...... उसने रजनीश की ओर देखा। रजनीश उसका इस तरह से देखने अभिप्राय नहीं समझ पा रहा था कि क्यों कान्ति उसे घबराई घबराई नजरों से देख रही है। वह पुलिस को धक्का देकर आगे जाने के प्रयास में पुलिस से उलझने लगी।
"...आप आगे नहीं जा सकते।" पुलिस ने रोकते हुए कहा।
इतने में रजनीश भी वहाँ पहुँच गया। उसने पुलिस से रोकने का कारण पूछा तो पुलिस ने कहा...
"55 में किसी को गोली लगी है।"
"...वो हमारा ही घर है। सब ठीक तो है।" रजनीश ने कान्ति को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा।
" खबर ठीक नहीं है।"
"...क्या मतलब......?" कान्ति ने रजनीश की ओर देखते हुए पुलिस से प्रश्न किया।
"वैसे बच्ची को हस्पताल लेकर गये है लेकिन......"
"लेकिन क्या ......?" घबराई कान्ति ने पूछा।
"बचने की कोई उम्मीद नहीं है। खून बहुत निकल चुका है।
"इतने में कला ने रोते रोते माँ के पास आकर उसके सीने से लिपट कर रोते हुए उससे कहा "......मम्मी रुची को ...।"
"...किसने मारी मेरी मासूम सी बच्ची को गोली।" कला को छाती से चिपकाते हुए कान्ति फफक पड़ी।
"मोनिका ने.........।"
इतना सुनना था कि कान्ति बेहोश होकर रजनीश के हाथों में झूल गई। पुलिस व रजनीश उसके चेहरे पर पानी के छींटे दे देकर उसे होश में लाने का प्रयास करने में लग गये। थोड़ा होश आने पर उसे घर पहुँचा दिया गया।
रजनीश ऊपर गया देखा मोनिका कमरे के कोने में डर के मारे दुबकी पड़ी है। उसके पास जाकर जैसे ही उसने उसके सर पर हाथ रखा। मोनिका जोर जोर से कहने लगी "...... नहीं पापा मैने नहीं मारा रुची को ...।"
गोद में लेते हुए रजनीश ने कहा... "मैं जानता हूँ ...जानता हूँ... तुमने जान बूझकर नहीं मारा। जो होना था सो हो गया लेकिन ये बता कि तुझे कहाँ से मिली थी वो पिस्तौल?"
"......भाई के कमरे में बिस्तर के नीचे से......" कहते कहते पापा से लिपट कर रोने लगी थी मोनिका। वो उसे चुप करने के प्रयास में था कि इतने में फोन की घंटी बज उठी। उसने फोन उठाया......"हलो...।" मनजीत ने आवाज पहिचान ली थी-
"... पापा... मम्मी से बात कर सकता हूँ ?"
"उनकी तबियत बहुत खराब है।"
"क्यों क्या हुआ मम्मी को?"
"खुद आकर देख लो।" खट से फ़ोन रख दिया था रजनीश ने।
मनजीत जैसे घर पर आया तो देखा चारों ओर पुलिस ही पुलिस। जैसे ही वे अंदर जाने लगा पुलिस ने टोका ...
"तुम्हारा नाम?"
"...मनजीत ...।"
उसे पकड़ते हुए पुलीस ने कहा, "यू आर अन्डर अरेस्ट ...। तुम्हें हत्या के जु्र्म में गिरफ़्‍तार किया जाता है।"
"लेकिन मैंने तो किसी का खून किया ही नहीं ...।"
"तुम्हारी गन से तुम्हारी छोटी बहिन का कत्ल हो गया है।"
"ओ माई गाड...... यह क्या हो गया!" कहते कहते वो रोने लग गया। इतने में रजनीश उसके पास आकर कहने लगा, "मनजीत... मैंने और तुम्हारी मम्मी ने तुम पे न जाने कितने सपने बुने थे। तुमने उन सब को तार-तार करके रख दिया। जानते हो... इनके टूटने के पीछे कौन और किसका हाथ है.. तुम्हारा। तुम्हारी इस पिस्तौल से एक नहीं कइयों की मौत हो गई बेटा। रुची मरी तुम्हारी गन की गोली से। माँ मर रही है तुम्हारी इन करतूतों से। कला को तो जैस साँप सूँघ गया हो। मोनिका तो इतनी डर गई है कि बात बात पर बेहोश हो रही है। रहा मै... मै चल फिर जरूर रहा हूँ लेकिन अन्दर से अपने को बहूत टूटा टूटा नहसूस कर रहा हूँ।"
"रुची गई...तुम भी कम से कम 10-12 साल के लिए तो गये ही समझो। तुम्हारी एक छोटी सी नादानी ने पूरे घर की बुनियाद हिला कर रख दी। क्या मिला हमे यहाँ आ कर। सब कुछ खत्म हो गया!"
कान्ति अपने विचारों में खोई हुई थी कि एक आवाज गूँज उठी ..."ऑल राईज...-" सुन कर कान्ति की तन्द्रा टूटी। उसके अगल बगल के सब लोग उठकर खड़े हो गये थे उसे भी कला व रजनीश ने सहारा देकर खड़ा किया, क्योंकि जज अपनी सीट पर बैठ चुका था।
थोड़ी देर में एक-एक करके मुलजिमों को ला कर जज के सामने प्ोश किया जाने लगा। काफी देर के बाद मनजीत कमरे में दाखिल हुआ। बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई। ये देख कर कान्ति के आँखों के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। दोनों, पक्ष विपक्ष की जिरह सुनने के बाद जज ने अपना फैसला सुनाया......
"हालातों और सबूतों को ध्यान में रखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि यद्यपि मुलजिम मनजीत का मृतक की मौत में सीधा हाथ नहीं है, लेकिन उसकी गन जो कि फ़ायर एक्ट के तहत रजिस्टर भी नहीं है, जो कि कानूनी जुर्म है। चूँकि उससे चली गोली चलने से एस मासूम की जान गई इसलिए मुल्जिम कसूरवार है... कानून उसकी उम्र को ध्यान में रखते हुए उसे 5 साल की सजा सुनाती है।" इसके साथ ही जज ने हथौड़े को मारते हुए ये ऐलान किया।
जैसे हथोड़ा बजा कान्ति को लगा यह आवाज वहाँ नहीं, बल्कि जज ने उसके हृदय पर मारी हो। सब जज को चैंबर से बाहर जाते देखते रहे। मनजीत कटघरे में अपने जाने की प्रतीक्षा में सर झुकाये खड़ा था।

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